
**कोरबा (छत्तीसगढ़), 21 दिसंबर 2025**
ऊर्जाधानी कोरबा की चमकदार औद्योगिक प्रगति के पीछे छिपी है हजारों परिवारों की दर्दभरी कहानी। SECL, NTPC, BALCO जैसे दिग्गजों के लिए अपनी पैतृक जमीन गंवाने वाले भू-विस्थापित आज भी न्याय की आस लिए भटक रहे हैं। नवनियुक्त जिलाधीश **कुणाल दुदावत** के कार्यभार संभालते ही ‘ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति’ (UBKKS) का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिला और दशकों पुरानी समस्याओं का ज्ञापन सौंपा।
यह मुलाकात सिर्फ शिष्टाचार भेंट नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई का प्रतीक थी। समिति ने कलेक्टर को बताया कि विस्थापन के बाद ये परिवार न रोजगार पा सके, न उचित पुनर्वास और न ही बुनियादी सुविधाएं। आदिवासी और ग्रामीण समुदाय अपनी पहचान और हक से वंचित होकर अनिश्चितता के अंधेरे में जी रहे हैं। कोयले की खदानों और पावर प्लांट्स की चमक ने उनकी जिंदगी को अंधेरा कर दिया है।

**मुख्य मांगें जो दिल को छू गईं**
प्रतिनिधिमंडल ने जोर देकर कहा कि जटिल शिकायतों के त्वरित निपटारे के लिए जिला स्तर पर एक **विशेष सेल** का गठन हो। साथ ही, प्रभावितों की सीधी सुनवाई के लिए नियमित **जनसुनवाई** आयोजित की जाए। समिति का कहना है कि प्रशासन को औद्योगिक इकाइयों से बेहतर समन्वय कर विस्थापितों को उनका हक दिलाना चाहिए।
समिति अध्यक्ष **सपुरन कुलदीप** ने बेबाकी से कहा, “आदिवासियों, पिछड़ों और युवाओं में गहरा असंतोष फैल रहा है। मूल निवासियों की बलि चढ़ाकर हो रहा विकास कितना न्यायसंगत है? नए कलेक्टर के संवेदनशील नेतृत्व में उम्मीद है कि न्याय मिलेगा।”

मुलाकात में **विजयपाल सिंह तंवर, रुद्र दास महंत, अनुसुईया राठौर, संतोष कुमार चौहान, श्रीकांत सोनकर** और **ललित महिलांगे** प्रमुख रूप से शामिल रहे। सभी ने कलेक्टर को शुभकामनाएं दीं और समस्याओं के जल्द निराकरण की उम्मीद जताई।
कोरबा की यह कहानी विकास और न्याय के बीच की खाई को उजागर करती है। क्या नया कलेक्टर इन भू-विस्थापितों की पुकार सुनेंगे? आने वाला समय बताएगा, लेकिन उम्मीद की किरण जरूर जगी है!


### कोरबा: विकास की चकाचौंध








